सावधान ! धर्म खतरे में है !!


अक्सर हम सुनते हैं कि धर्म खतरे में हैं | गली मोहल्लों से लेकर विश्वस्तर पर धर्म रक्षक बने लुच्चे लफंगों की सेनाएं तैनात हो रहीं हैं | हर किताबी रट्टामार धार्मिक इस बात पर बहुत ही गंभीरता से विश्वास करता है कि धर्म खतरे में हैं और उसकी रक्षा करने के लिए लठैतों, छुरेबाजों, तलवारबाजों, कट्टेबाजों और असाल्ट राइफलधारकों की सेनाओं की आवश्यकता है | इसलिए वह इन सड़क छाप लफंगों की सेनाओं को दोनों टाँगे उठा नतमस्तक होकर नमन करता है |

आये दिन गुंडे बदमाश और बेरोजगार लफंगे धर्म की रक्षा के नाम पर किसी न किसी निर्दोष निहत्थे की हत्या कर देते हैं या उसे बुरी तरह घायल कर देते हैं | कहीं गौ रक्षा के नाम पर हत्याएं हो रहीं हैं तो कहीं इस्लाम और हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर | कहीं धर्म की रक्षा के लिए लडकियाँ उठा ली जाती हैं तो कहीं बलात्कार करके मार दिया दिया जाता है…..और ये सारे काम धार्मिक काम धर्म के रक्षकों द्वारा बड़ी श्रृद्धा से किया जा रहा है |

यह और बात है कि मेरे जैसे मंदबुद्धि लोगों की समझ में यह बात नहीं आती और कभी भी नहीं मानते कि धर्म खतरे में हैं….लेकिन मैं भी अब मानने लगा हूँ | क्योंकि अब स्पष्ट दिखने लगा है कि धर्म वास्तव में खतरे में हैं | अब प्रमाणित हो चुका है कि धर्म वास्तव में खतरे में हैं |

क्या धर्म खतरे में है ?

बिलकुल धर्म खतरे में है अब कोई संदेह नहीं रह गया | बस कुछ लोग समझ नहीं पा रहे कि धर्म खतरे में है, लेकिन धर्म वास्तव में खतरे में है | केवल भारत में ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में धर्म खतरे में है |

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन….जैसे सम्प्रदायों, रिलीजन्स की बात नहीं कर रहा |  मैं केवल धर्म की ही बात कर रहा हूँ और उस धर्म की बात कर रहा हूँ जिसे मैं सनातन धर्म कहता हूँ, जिसे मैं प्राकृतिक व ईश्वर प्रदत्त धर्म कहता हूँ | मैं किसी मानव निर्मित या किसी व्यक्ति-विशेष या किताब-विशेष पर आधारित धर्म की बात नहीं कर रहा | मैं तो उस धर्म की बात कर रहा हूँ जिसे लोग मानवता कहते हैं, इंसानियत कहते हैं, Humanism कहते हैं |

जो सनातन है वह खतरे में कैसे पड़ सकता है ?

पड़ सकता है नहीं, पड़ चुका है | अब समाज, परिवार व माता-पिता अपने बच्चों को इंसान नहीं बनाते, बल्कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, कांग्रेसी, भाजपाई, सपाई, बसपाई बनाना पसंद करते हैं | अब माता-पिता स्वप्न नहीं देखते कि उनके बच्चे बड़े होकर इन्सान बन जाएँ, बल्कि अब सपने देखते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर डॉक्टर बने, इंजिनियर बनें, आईएएस बने, आइपीएस बने | अब माता पिता को बुरा नहीं लगता कि उनके बच्चे डिग्री लेकर लुच्चों लफंगों की सेना में शामिल होकर गुंडा-गर्दी करता फिरे, मोब-लिंचिंग करता फिरे, धूर्त-लम्पट नेताओं के तलुए चाटता फिरे, छुरा-कट्टा लेकर सड़कों पर आवारगर्दी करता फिरे…बल्कि अब उन्हें गर्व होता है कि उनका बच्चा यह सब करके धर्म की रक्षा कर रहा है |

और ऐसी मानसिकता का विस्तार होना सनातन धर्म को भी खतरे में डाल देता है | क्योंकि जब मानव ही सनातन धर्म से विमुख हो जायेगा और दड़बों को धर्म समझने लगेगा, तो धर्म का पतन निश्चित है | अब आपको न तो इस्लामिक समाज में धर्म दिखाई देगा और न ही हिन्दू समाज में, न ही साधू-समाज में, न ही बाल्मीकि, अम्बेडकर, मोदी या किसी और समाज में या दड़बे में धर्म दिखेगा | न तो मंदिरों में आपको धर्म दिखेगा, न ही मस्जिदों में आपको धर्म दिखेगा, न स्कूलों में, न कॉलेजों में…..यानि धर्म पुर्णतः बहिष्कृत हो चुका है समाज में और साम्प्रादायिकता को धर्म का नाम दे दिया गया |

अब केवल दिखावे के धार्मिक दिखेंगे, अब केवल दिखावे के धार्मिक कर्मकांड जैसे कि दान, सेवा, परोपकार, कमजोर व असहायों की निःस्वार्थ सहायता, शालीनता, सभ्य शालीनता पूर्वक बात करने की कला, अशिष्टता से परहेज, खुद खाने से पहले भूखे को खिलाना…..आदि इत्यादि सब व्यावहारिकता में लुप्त ही चुके हैं और जो थोड़ा बहुत दिख भी कही रहा है, तो वह भी दिखावा ही है | बिलकुल वैसे ही जैसे बड़े तोंद वाले बेडौल महापुरुषों का योग के प्रचार के लिए कैमरे के सामने योग करना | यानि जो कुछ भी किया जा रहा है वह भीतरी आवेग से नहीं, धार्मिक परम्परा मानकर किया जा रहा है |

यही कारण है कि अब धर्म की शिक्षा सभ्य व शालीन विद्वान नहीं देते, न ही स्कूलों, विश्वविद्यालयों में सिखाया जाता है | बल्कि सड़क छाप लुच्चे लफंगों को कट्टा, तमंचा, लाठी, बन्दूक थमाकर धर्म की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप देते हैं | इन लुच्चे लफंगों द्वारा किसी निर्दोष की हत्या कर देने पर न उनके माता-पिता शर्मिंदा होते हैं और न ही समाज या धार्मिक लोग शमिन्दा होते हैं | क्योंकि उनका धर्म तो किताबों में सुरक्षित है तो वे जानते हैं कि उनका धर्म खतरे में नहीं है | सारे देश में लोग आपस में मार काट-करने लगें, तब भी ये धार्मिक यही मानेंगे कि उनका धर्म खतरे में नहीं है…वे सही हैं | क्योंकि उनका धर्म किताबी है जो कभी व्यावहारिक नहीं हो सकता और जो व्यवहारिक ही नहीं है, वह खतरे में भला कैसे पड़ सकता है ? जो योद्धा अपने घर से बाहर ही न निकले, जो तलवार अपने म्यान से ही न निकले, भला वह खतरे में कैसे पड़ सकता है ?

धर्म क्या है और अधर्म क्या है ?

लेकिन मैं मानने लगा हूँ कि धर्म खतरे में है | क्योंकि धर्म पारम्परिक कर्मकाण्ड नहीं है | पूजा-पाठ, नमाज, तिलक, टोपी, घंटे-घड़ियाल, आरती-कीर्तन धर्म नहीं हैं | धर्म है परोपकार, सेवा, सहयोग, आपसी सद्भाव, प्रेम, करुणा, समाज के हितार्थ कार्य करना, अपने गाँव, मोहल्ले के हितार्थ कार्य करना, राष्ट्र व नागरिकों के हितार्थ कार्य करना | और यह सब करते हुए, स्वयं को प्रसन्न व स्वस्थ रखने के समस्त उपाय करना, अपने सामर्थ्यानुसार उपलब्ध भोगों का उपभोग करना, नाचना, गाना…उत्सव मनाना ये सब धर्म हैं |

दूसरों को कष्ट देना, दूसरों की सम्पत्ति छीनना, दूसरों पर अत्याचार करना, दूसरों के सुख में बाधा डालना, दूसरों के प्रेम में विष घोलना, समाज में सांप्रदायिक वैमनस्यता पैदा करना, निहत्थे, निर्दोषों की हत्याएं करना, गाली-गलौज करना, अशिष्टता से बात करना….ये सब अधर्म हैं |

सप्रमाण समझिये कि धर्म कैसे खतरे में हैं

भारत में शायद ही कोई होगा जो खुद को अधार्मिक कहता हो | नास्तिक भी खुद को अधार्मिक नहीं कह सकता क्योंकि नास्तिक भी कहीं न कहीं कोई न कोई परोपकार के कार्य कर ही देता है| और परोपकार धर्म है | तो जब सवा अरब से अधिक की आबादी धार्मिक है चाहे वह किसी भी पंथ, मत, संप्रदाय से सम्बंधित हो, लेकिन स्वयं को धार्मिक तो मानता ही | इनमें से कई लोग ऐसे भी होंगे जो खुद को हिन्दू नहीं मानता, मुस्लिम नहीं मानता, सिख नहीं मानता लेकिन इन्सान तो मानता ही है | और इंसानियत धर्म है क्योंकि इसका विपरीत हैवानियत अधर्म है |

लेकिन इतनी बड़ी संख्या में धार्मिकों के रहते हुए भी भारत में धर्म लुप्त होने के कागार पर पहुँच जाना गंभीर चिंता का विषय है

प्रथम प्रमाण:

एक खबर पढ़ी मैंने; ‘तेजी से महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत में तकरीबन 19 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैंं और प्रतिदिन 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं। यह जानकारी ग्लोबल हंगर इंडैक्स के आंकड़ों से मिली है। हालांकि भारत का स्थान पिछले साल के मुकाबले ग्लोबल हंगर इंडैक्स में 63 के मुकाबले 53वां है। मंगल पर अपना यान भेजने वाले देश भारत में भूख के खिलाफ जंग सबसे बड़ी चुनौती है। बच्चों में कुपोषण और उनकी मृत्यु दर का स्तर बेहद चिंताजनक है। यहां तक कि नेपाल और श्रीलंका की स्थिति भारत से बेहतर है जबकि पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे पिछड़े देशों में स्थिति और भी बुरी है।’ साभार: भोपाल समाचार

क्या कभी आपने सोचा कि लगभग हर सम्प्रदाय यह मानता है कि उनका सम्प्रदाय धर्म को महत्व देता है, लेकिन फिर भारत में ही 19 करोड़ लोग भूखे पेट क्यों सोते हैं ? क्यों प्रतिदिन तीन हज़ार बच्चे भूख से मर जाते हैं ?

चलिए मान भी लें कि ये आँकड़े झूठे हो सकते हैं…तीन हज़ार नहीं, हज़ार बच्चे ही रोज मरते हैं…तो भी क्यों मरते हैं ? क्या किताबी धार्मिकों की किताबों में यह नहीं लिखा है कि कोई पड़ोसी भूखा रह जाए और आपके गले से निवाला उतर जाए तो इससे बड़ा अधर्म और कुछ नहीं ? क्या सभी धार्मिकों के समाज में भूखे को भोजन, प्यासे को पानी पिलाना सबसे बड़ा पुण्य नहीं माना गया ?

कितने धार्मिक संगठनों ने भूखे को भोजन देने के लिए आन्दोलन किये और भूखों तक भोजन पहुँचाया ? कितने धर्मरक्षक तलवार की बजाय, भोजन की थाल और पानी की बोतल थामें भूखों के घर तक पहुँचे ? कितने धार्मिकों ने राजनैतिक दबाव बनाया कि भूखों को पहले भोजन दो, अच्छी चिकित्सीय सेवायें उपलब्ध करवाओ, उन्हें आत्मनिर्भर होने में सहयोग करो उसके बाद जीडीपी का ग्राफ दिखाना ? क्या कभी तनिक भी शर्म आयी खुद को धार्मिक कहते हुए जबकि धार्मिक कोई कार्य नहीं कर रहे केवल दिखावा कर रहे हो ?

जो कट्टा-तमंचा लिए धर्म की रक्षा के लिए निकले हैं, क्या उन मूर्खों को किसी ने बताया कि कट्टे तमंचों से नहीं सेवाभाव व सहयोग से धर्म की रक्षा होती है | दड़बा हिन्दू हो या मुस्लिम या कोई और, सभी में बेबस और लाचार मिल जाते हैं…लेकिन क्यों ? जब आप खुद धार्मिक नहीं हो पाए तो फिर ये धार्मिकता का ढोंग क्यों ?

दो चार लोग हर समाज में ऐसे मिल जाते हैं, जो गरीबों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं, उन्हीं की सहायता क्यों नहीं कर देते यदि खुद नहीं पहुँच पाते किसी गरीब के पास तो ??? चलिए माना कि आप कट्टर धार्मिक हैं अपने धर्म के अलावा किसी और धर्म को बर्दाश्त नहीं कर सकते…अरे तो कम से कम अपने ही धर्म नाम के दड़बे में जो बेबस और लाचार भरे पड़े हैं उनकी ही सहायता कर दो और मरने दो दूसरे दडबों के बेबस और लाचारों को | अरे कम से कम अपने ही समुदाय, सम्प्रदाय की सहायता तो करो ??

द्वितीय प्रमाण:

सभी सम्प्रदायों के धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि अधर्मियों का साथ मत दो, अत्याचारियों का साथ मत दो, अशिष्ट व असभ्य लोगों को सही राह दिखाओ या उनका बहिष्कार करो | लेकिन क्या धार्मिक लोग ऐसा कर रहे हैं ?

यदि अधर्मियों, अत्याचारियों का सहयोग नहीं कर रहे होते धार्मिक लोग, तो क्या अधर्मी आज सड़कों से लेकर ससंद तक उत्पात कर रहे होते ? क्या जनता को लूटकर कोई विदेश भाग सकता था ? क्या कोई जनता पर दुनिया भर के टैक्स थोपकर चैन से रह सकता था ? क्या कोई जनता को असहाय और लाचार बनाने के अपने उद्देश्य में सफल हो सकता था ? क्या धर्म की रक्षा के नाम पर लुच्चे-लफंगों का गिरोह किसी निर्दोष की हत्या कर सकता था ?

लेकिन ऐसा हो रहा है क्योंकि समाज धर्म से विमुख हो गया है | अब दडबों को धर्म समझ बैठा है समाज, अब नेताओं, बाबाओं, राजनैतिक व सांप्रदायिक, जातिवादी पार्टियों को धर्म समझ बैठा है | अब इंसान होना महत्वपूर्ण नहीं रह गया, अब हिन्दू होना, मुसलमान होना, काँग्रेसी होना, भाजपाई होना, संघी होना, बजरंगी होना धर्म हो गया | और चूँकि दड़बों को धर्म मान लिया गया, इसीलिए इन दडबों की सुरक्षा के लिए लुच्चे लफंगों की सेनाओं की आवश्यकता पड़ गयी | वरना सवा सौ करोड़ की जनसँख्या क्या कम है इन लुच्चे लफंगों से निपटने के लिए ? क्या सवा सौ करोड़ की जनसँख्या क्या कम है इन धूर्त, जुमलेबाज, लुटेरे नेताओं को उनकी औकात बता देने के लिए ???

लेकिन दुर्भाग्य से जनता ही धर्म से विमुख हो गयी और यही कारण है कि कुछ मुट्ठीभर बदमाश पुरे देश को गुलाम बना कर बैठ गये | कुछ मुट्ठीभर लुटेरे पुरे देश को लूटकर मालामाल हो गये और जनता अपनी किस्मत को कोस रही है |

तृतीय प्रमाण:

क्या सभी सम्प्रदायों की धार्मिक पुस्तकों में शिक्षा के महत्व को नहीं स्वीकारा गया है ? क्या शिक्षा का प्रसार प्रसार करना सभी धार्मिकों के प्रमुख कर्तव्यों में से एक नहीं है ?

फिर शैक्षणिक संस्थानों की दुर्गति क्यों हो रही है ?

एनडीटीवी ने एक सर्वे में यह खुलासा किया है कि भारत में अधिकांश सरकारी स्कूलों में शौचालयों और पीने के पानी की बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के कार्यान्वयन पर एनडीटीवी ने भारत के 13 राज्यों में 780 सरकारी स्कूलों का सर्वेक्षण किया। परिणाम बहुत शर्मनाक था उनमें से 63 प्रतिशत स्कूलों में कोई खेल का मैदान नहीं था। सर्वे किए गए स्कूलों में से एक तिहाई से अधिक स्कूलों की स्थिति बेहद खराब थी। ऐसी स्थित में अगर कोई छात्र शौचालय जाना चाहता है तो वह घर वापस चला जाता है। एनडीटीवी चैनल ने शौचालय की कमी को छात्राओं द्वारा अधिक मात्रा में स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण बताया। स्थित इतनी खराब थी की 80% से अधिक स्कूलों में उम्र के अनुसार छात्रों का प्रवेश नहीं था।

शिक्षा का अधिकार, अधिनियम (आरटीई) प्राथमिक शिक्षा पूरी होने तक बच्चों को मुफ्त और आवश्यक शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम छात्र शिक्षक अनुपात (पीटीआर) के साथ-साथ स्कूलों की इमारतों, बुनियादी ढाचों, स्कूल के कामकाज के दिनों, शिक्षकों के काम करने के घंटों, प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति को भी निर्दिष्ट करता है।

बहुत से सरकारी स्कूलों को लंबे समय से पुनःनिर्मित नहीं किया गया है। कभी-कभी छात्रों को कक्षा के बाहर फर्श पर बैठने के लिए कहा जाता है क्योंकि स्कूल की छत किसी भी समय गिर सकती है। साभार: Maps of India

क्या धार्मिकों ने कभी शिक्षा पर प्रश्न उठाया ? क्या कभी धार्मिकों ने सरकार पर दबाव बनाया कि उनके बच्चों को उचित शिक्षा मिले वह भी बच्चों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाये बिना ?

शायद नहीं ! क्योंकि आप लोगों के लिए ये धर्म नहीं है | धर्म तो है हिन्दू-मुस्लिम खेलना, ब्राह्मण-दलित खेलना…..और मेरी नजर में ये केवल साम्प्रदायिकता है धर्म नहीं | धर्म हिन्दू-मुस्लिम में नहीं बटा हुआ है, धर्म केवल धर्म ही होता है और सार्वभौमिक होता है | हिन्दू हो या मुस्लिम  या कोई और सम्प्रदाय, सभी के बच्चों को शिक्षा दिलाना धर्म है | सभी के बच्चों के स्वास्थ्य व सुरक्षा का ध्यान रखना धर्म है |

तो समाज धर्म से विमुख हो गया और साम्प्रदायिकता को धर्म मान बैठा, इसीलिए ही मैं कह रहा हूँ कि धर्म खतरे में हैं | धर्म वह नहीं जो ये लुच्छे लफंगों के नेता और ठेकेदार समझा रहे हैं | ये छुरेबाज, कट्टेबाज, बेरोजगार लफंगे और उनके ठेकेदार सिखायेंगे हमें धर्म ???

यदि ऐसी स्थिति आ गयी है कि अब इन लुच्चे लफंगों से धर्म सीखना पड़े, तो बेहतर है कि सारा समाज ही आत्महत्या कर ले | यदि इनके बहकावे में आकर पढ़े-लिखे भी गुंडागर्दी करने लगें, साम्प्रदायिक वैमनस्यता फैलाने लगें, तो बेहतर है कि समाज खुद को धार्मिक कहना ही छोड़ दे |

तो शायद अब आप समझ गये होंगे कि धर्म वास्तव में खतरे में हैं क्योंकि समाज धर्म से विमुख हो गया और साम्प्रदायिकता को धर्म के रूप में धारण कर चुका है | और यही स्थिति रही, तो बहुत ही जल्द धर्म लुप्त जाएगा और उसके साथ ही लुप्त हो जाएगा इंसान और इन्सानियत |

~विशुद्ध चैतन्य

निराकार का भी आकार होता है


साकार की उपासना तो समझ में आती है मुझे | क्योंकि जो प्रत्यक्ष आपकी सहायता करता है उसकी उपासना या सम्मान स्वाभाविक है | जैसे कि सूर्य की उपासना, चन्द्र की उपासना, नदी, वृक्ष, पहाड़, खेतों की उपासना | ये सभी जीवन दायी हैं | कुछ लोग नेताओं, अभिनेताओं, क्रिकेटरों की उपासना करते हैं वह भी समझ में आता है क्योंकि वे उनकी तरह होना चाहते हैं न कि अपनी तरह | कुछ लोगों की दाल रोटी ही उनकी चापलूसी से चलती है इसलिए वे उनकी उपासना करते है, वह भी समझ में आता है लेकिन…. पढना जारी रखे

हर किसी को लगता है कि वही समय का सदुपयोग कर रहा है

Aside


लोग जो समय रोज़े, नमाज़,संध्‍या-पूजा और प्रार्थना में नष्ट करते हैं, उसे यदि समाज के किसी उपयोगी काम में लगावें, तो अपने भाइयों का अपना बहुत कल्याण कर सकते हैं। यदि संसार से ईश्वर और धर्म के व्यर्थ गपोड़े मिट जायँ, तो लोगों में फ़ैले हुए झगड़ों का अन्त हो जाय। जब कोई मूर्ख से मूर्ख पिता भी अपना वश चलते अपने पुत्रों को नहीं लड़ने देता तो, यदि वास्तव में कोई खुदा होता और सर्वशक्तिमान् खुदा होता- तो वह अपनी संतान को कदाचित् अपने नाम पर कुत्तों की तरह न लड़ाता। यदि खुदा शक्ति और बुद्धिवाला होता तो भी वह एक ही धर्म सारे संसार के लिए बनाता- सारे संसार की एक ही बोली और एक ही संस्कृति होती- जिससे इन झगड़ों का बीज ही न पड़ता। जो खुदा झगड़ों का बीज बोता हो, जो धर्म मनुष्यों के लिए वास्तविक हितकर न हो, वह यदि वास्तव में कुछ हो भी तो विषवत् त्याज्य ही है। -राधामोहन गोकुलजी (पुस्तक: ईश्वर का बहिष्कार)

मेरे एक मित्र श्री D.r. Godara जी ने इस पुस्तक के विषय में जानकारी दी और मुझसे अपनी राय व्यक्त करने का आग्रह किया | मैंने पुस्तक के कुछ अंश पढ़े, लेकिन पूरी नहीं पढ़ी | फिर भी मैं इतना तो समझ ही चुका था कि पुस्तक के लेखक गोकुलजी, बहुत ही सुलझे विचारों वाले, पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं | पढना जारी रखे